शनिवार, 24 दिसंबर 2011

बद-दुआ


न्यायधीश ने सभी कातिलों को बरी करने का फैसला सुनाया। कातिल इजलास से बाहर निकले तो उनका सामना उस मां से हुआ जिसके बेटे का दस साल पहले बेरहमी से कत्ल किया गया था। पांचों कातिलों ने उस मां के सामने अंहंकार से अपना सीना ठोका। इस पर उस मां ने कहा- बेटो ! तुम इस अदालत से तो बरी हो गए , लेकिन असल फैसला तो उपर वाले की अदालत में ही होगा।

इसके बाद अदालत से बरी हुए पांचों कातिल एक खुली जीप में सवार होकर जश्न मनाते हुए अपने गांव जाने के लिए रवाना हुए। करीब पांच किलो मीटर चलने के बाद एक फाटक रहित रेलवे क्रासिंग पर उनकी जीप रेलवे लाईनों में फंस गई। जब तक वे उस जीप से नीचे उतर पाते उससे पहले ही तेज गति से आ रही रेलगाड़ी ने उसके परखच्चे उड़ा दिए। इस हादसे में उन पांचों कातिलों के अंग दूर दूर तक बिखर गए। फिर इन्सानी पुलिस मौके पर पहुंचीं और पंचनामा किया। पुलिस ने अब निष्पक्ष पंचनामा किया। क्यों कि अब उसके सामने भगवान का दरबार सजा हुआ था।

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

क्या हकीकत है ?


कुछ अमीर लोग, किसी पर किए गये एहसान
के बदले में जिन्दगी भर, उससे सूद वसूलने की 
चाह रखते है। जो प्यार के रिश्तों को भी बर्बाद 
कर देते हैं। एहसान जताने से एहसान......
,एहसान नहीं रहता, वह स्वार्थ में बदल जाता है।.
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धन दौलत तो बहुत से लोगों के पास होती है|
मगर किसी की आर्थिक मदद करने और
दूसरों पर खर्च करने का दिल किसी-किसी
के पास ही होता है।........................
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एक धनवान जब किसी को कुछ देता है
तो उसमें एक स्वार्थ छुपा रहता है..
मगर एक फ़कीर जब किसी को कुछ देता है
तो उसमें सिर्फ़ देने की खुशी छुपी होती है।
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धन के बल पर मिला मान-सम्मान अस्थाई होता है.
धन समाप्त होने के साथ वह भी विलुप्त हो जाता है.


लेकिन चरित्र के आधार पर मिला मान-सम्मान स्थाई होता है.
वह जीवन भर साथ रहता है और विलुप्त भी नहीं होता....


मृत्यु उपरान्त भी जीवित रहता है.........


शनिवार, 2 जुलाई 2011

सफलता का मंत्र..




मैं क्लिनिक के भीतर पहुंचा। मरीज़ों की काफी भीड़ जमा थी। कन्धे से बैग उतार कर नीचे रखते हुए मैंने कम्पाउंडर से पूछा-"क्या डाक्टर समीर हैं ?"
कम्पाउंडर ने केबिन की तरफ इशारा करते हुए कहा-"भीतर हैं ।"
मैंने लपकते हुए केबिन का दरवाजा ठेल दिया। भीतर झांका। एक पके हुए बालों वाले सज्जन किसी मरीज़ का परीक्षण कर रहे थे। सोचा शायद वे भी कोई डाक्टर हैं। मैंने ठिठकते हुए पूछा-" नमस्कार ! मुझे डाक्टर समीर से मिलना है !"
उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।सिर्फ नज़र उठा कर देखा और फिर कागज़ के टुकड़े पर सामने बैठे मरीज़ को दवा लिखने लगे। वह मरीज़ बाहर चला गया। उन्होंने उठ कर मेरे कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा-" आओ मैं तुम्हें डाक्टर समीर से मिलाता हूं ! " मैं निःशब्द उनके साथ हो लिया। क्लिनिक के पिछवाड़े बने मकान में पहुंच कर उसने अपने बालों को सहलाया।मूंछे और सिर से विग उतार कर उसने तिपाई पर रख दी। मैं भौंचक्का आंखें फाड़े उसकी तरफ देखता रह गया। वह डाक्टर समीर ही था।
" समीर ! ये क्या ?"
" मेरी सफलता का राज़!"
"सफेद बालों की विग और मूंछों में भला सफलता का कैसा राज़ ?" मैने कौतूहल वश पूछा।
" राजेश भाई ! मैने एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद जिस कस्बे में अपना क्लिनिक खोला वहां मैं पूर्णतया विफल रहा। यह भेष धारण करने के बाद इस कस्बे में क्लिनिक खोला और आज मैं कामयाब हूं।"
"लेकिन इससे क्या फर्क पड़ा ?" मैं और उलझ्न महसूस करने लगा।
इस पर डाक्टर समीर ने उत्तर दिया-"पहले मेरा लड़कपन,युवा होना मेरी कामयाबी के आड़े आ गया। किसी मरीज़ को डाक्टर के उपचार से तब ही सन्तुष्टि प्राप्त होती है, जब उसे डाक्टर के चेहरे पर अनुभव की झुर्रियां दिखाई दें। यह लोगों की मानसिकता है। मैने सफेद बालों की विग लगा कर अपने आप को मरीज़ों की मानसिकता के अनुरूप ढाला।"
समीर का उत्तर सुन मैं कर आश्चर्य से तिपाई पर रखी सफलता की विग को देख रहा था।
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गुरुवार, 16 जून 2011

इलाज़ (लघुकथा)



हक़ीम शाह इब्राहिम ने अपनी आंखों पर चश्मा चढा कर बाहर की तरफ झांका। किसी का जनाज़ा उनकी चौखट के आगे से ग़ुजर रहा था। वे दरवाजे तक चल कर आए और जनाज़े में शामिल एक सज्जन से पूछा-" यह कौन फौत हो गया है भई।"
" हकीम साहब यह फातिमा है! मोहम्मद शकूर की बीवी! आज सुबह दिल का दौरा पड़ने से इसका इंतकाल हो गया।"
"रोको इस जनाज़े को !" हकीम साहब की कर्कश आवाज जनाज़ा उठाए लोगों तक पहुंची। सभी सकते में आ गये। सभी गांव वाले जानते थे कि हकीम साहब जिस पर गुस्सा हो जाते थे वह मरीज बिल्कुल ठीक हो जाता था। लेकिन फातिमा की तो मौत हो चुकी है। उसके जनाज़े को हकीम साहब ने गुस्से में आकर क्यों रूकवाया। सभी की नज़रे हकीम साहब के दवाखाने की तरफ हैरानगी से देख रही थीं। जनाज़ा रुक गया। 
" जनाज़े को नीचे उतारो ! कोई अन्दर से मेरी बंदूक लाओ!" हकीम साहब का गुस्सा और बढ गया। जनाज़े में शामिल लोग भौंचक्के रह गये। भीतर से बन्दूक लाई गयी। हकीम सहाब ने फातिमा के जनाज़े के पास बन्दूक रख कर आसमान की तरफ हवाई फायर किया। उसी समय फातिमा के बदन में हरकत हुई और कुछ ही पल बाद फातिमा जनाज़े से उठ कर बैठ गई। सभी यह दृश्य देख कर दंग रह गये। किवदन्ति है कि फातिमा गर्भवती थी। उसके दिल की धड़कन गर्भ में पल रहे शिशु के हिलने डुलने से रुक गई थी। लेकिन बन्दूक के धमाके की आवाज से यह शिशु फिर हिला तो फातिमा की धड़कन फिर से चलने लग गयी।
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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

स्वरन्तर




स्वार-एकः
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"सेठ जी भूखी आत्मा को रोटी दे ! भगवान तेरा भला करेगा !"
यह एक भिखरिन का स्वर था। एक हाथ से लाल रंग की गोटा लगी ओढनी माथे तक खींच कर, कलाईयों से ऊपर तक पहने हाथी दान्त के चूड़े को घुमा कर ठीक करने लगी वह। अर्द्धवक्ष ढका हुआ। दूसरे हाथ में आठ-दस रोटियां उठाए भिखारिन की दृष्टी ढाबे के भीतर काम कर रहे युवक पर केन्द्रित हो गयी। क्षण भर बाद वह युवक अपने हाथ में दो रोटियां और सब्जी लेकर भिखारिन के पास आया-" ये ल्ले .. खा ले ! पानी भी ला दूं ?"
"पिला ,,दे !"भिखारिन चपातियां और सब्जी अपने कब्जे में लेते हुए कहा।
"लेकिन तूं हमारा काम भी कर दे !" युवक ने खीसे निपोरतेहुए कहा।
"कोण सा काम ? क्या कहता है ?" भिखारिन की त्यौरियां चढ गयीं।
युवक ने भिखारिन के तेवर भांप लिये। उसने बात का रुख बदलते हुए कहा-"अरे यही काम,,,दुकान पर बर्तन धोने का !"
"नहीं,, हमें तो आज गांव जाना है !" भिखारिन सहज भाव से आगे बढ गई। युवक खिसियाता हुआ सा ढाबे के भीतर चला गया।


स्वर-दोः
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"बाबा कुछ खाने को मिल जाएगा ? सुबह से भूखा हूं,,, कुछ नहीं खाया ! दया करो !" एक क्षीण पुरुष भिखारी का स्वर। ढाबे के बाहर अपन्ग भिखारी बैसाखियां टिकाए खड़ा था। पिचके गाल, खिचड़ी बाल, और धंसी हुई आंखें।
ढाबे से वही युवक बाहर आया- "क्या है अबे ?" 
भूख और जर्जरता के कारण भिखारी दुबारा बोल नहीं पाया। उसने इशारे से कुछ खाने को मांगा।  
"चल चल यहां क्या तेरे बाप का खज़ाना गड़ा पड़ा था क्या ? चल फूट ले कोई ग्राहक आने दे !"
अपंग भिखारी हतप्रभ, निराश बैशाखियां पटकता हुआ आगे बढ गया।
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गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

आत्म-सन्तुष्टि ( लघु-कथा )


धनकु ने बीसियों गालियां दीं, एक झापड़ भी रसीद कर दिया। गोरली सब सहन कर गई। उसने धनकु ने बीसियों गालियां दीं, एक झापड़ भी रसीद कर दिया। गोरली सब सहन कर गई। उसने केवल हल्का सा विरोध किया। धनकु का सुबह सुबह शराब पीना, गोरली को बर्दाश्त नहीं होता और धनकु को उसके शराब पीने के बारे में कुछ कहना सहन नहीं होता। तभी यह बावेला खड़ा हो गया, सरे बाजार, सुबह सवेरे। 
गोरली ने सड़क के किनारे फ़टी हुई टाट बिछाई। पेटी, पालिश, ब्रश और रंग बिरंगी शीशियां सजा कर बैठ गई, मर्दों के जूते गांठने, पलिश करने को। उसके नथुने अभी भी फूले हुए हैं। माथे की त्यौरियां चढी हुई हैं, लेकिन वह चुप-चाप बैठी है, मन के गुबार को भीतर ही दबाए।
अचानक उसकी नज़र, रेलवे बाऊन्डरी में जमा भीड़ की तरफ चली गई। वहां अन्नपूर्णा सेवा समिति द्वारा सक्रान्ति के अवसर पर गरीबों को सूजी का हलवा बान्टा जा रहा था। गोरली भी पंक्ति में जा कर बैठ गई। जितना हलवा मिला उसे पत्तल में समेट कर वह वापस लौट आई। टाट पर रख वह एक निवाला मुंह की तरफ ले गई,,,, लेकिन खाने का मन नहीं हुआ। हलवे वाला पत्तल समेट कर, पेटी में रख दिया और वह बैंक के पिछवाड़े धनकु को बुलाने चली गई। धनकु लड़खड़ाता हुआ, गोरली का सहरा लिए टाट पर आ कर बैठ गया। गोरली ने पेटी से हलवा निकाल कर धनकु के आगे रख दिया। धनकु ने आंखें मिचमिचा कर गोरली की तरफ देखा। गले को खरखरा कर साफ किया। फिर धपाधप हलवा खाकर उठा और लड़खड़ाता हुआ बैंक के पिछवाड़े वापस चला गया। जब धनकु आंखों से ओझल हो गया तो गोरली ने पत्तल में पड़ा, एक ग्रास हलवे का लौंदा उठा कर मुंह में डाल लिया। हलवे का वह बचा हुआ ग्रास निगलते हुए उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुरहट फैल गयी। उसे लगा जैसे भीतर का गुबार आत्मसन्तुष्टि के शीतल जल में घुल गया हो।
************************************************केवल हल्का सा विरोध किया। धनकु का सुबह सुबह शराब  की तरफ ले गई,,,, लेकिन खाने का मन नहीं हुआ। हलवे वाला पत्तल समे

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

भय-बोध


 किशना की नौकरी का पहला दिन था। अन्धेरी रात। खेत का चक्कर काट वह ट्यूबवैल पर लौट आया। उसे चाय की तलब महसूस हुई। चूल्हेनुमा ईन्टों में आक की सूखी लकड़ियां , पते खोंस कर जेब से माचिस निकाली। माचिस खाली थी। कमरे के आले में अंगुलियां फिरा कर देखा, वहां भी दूसरी माचिस नहीं थी। किशना ने चारपाई पर बेखबर सोए दीनू को हिलाते हुए पूछा-" दीने,,, ओ.. दीने! चाय पीएगा ?" लेकिन दीनू ने उंघते हुए करवट बदल ली। 
"माचिस कहां है ?" किशना ने एक बार फिर दीनू को झिंझोड़ा।
"आले में होगी ।" 
"वहां नहीं है ?" 
"तो फिर सो जा  ना!" 
इसके बाद किशना ने  दीनू को दो तीन बार फिर से उठाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं जगा। किशना की चाय पीनी की तलब और बलवती हो गई। उसे थोड़ी ही दूरी पर कहीं आग जलती दिखाई दी। पतीले में पानी, चाय पत्ती चीनी व दूध डाल कर वह उसी दिशा में चला गया। वहां आग के पास कोई नहीं था। उसने पतीला आग पर रख दिया। थोड़ी देर में चाय तैयार हो गयी। ट्यूबवैल पर लौट कर उसने इत्मीनान से चाय पी और सो गया। 
अगली सुबह दीनू ने किशना से पूछा-" चाय पी"
"हां"
"तुमने चूल्हे में आग तो जलाई नहीं , फिर चाय कहां बनाई?"
"वहां आग जल रही थी... वहां बना कर लाया!" किशना ने पश्चिम दिशा की ओर ईशारा कर बतया।
" वहां... वहां तो शमशान भूमि है !" दीनू की आंखें फैल गईं।
किशना क्षणभर को विस्मित रहा गया। भय बोध के बाद उसके अन्तर्मन में सिहरन सी होने लगी। उसे लगा कि चाय उसके भीतर भय के रूप में उतर रही है।
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सोमवार, 11 अप्रैल 2011

भद्रकाली मेला....


हनुमानगढ जिला मुख्यालय से लगभग सात किलों मीटर दूर भद्र काली मन्दिर पर प्रति वर्ष चैत्र सुदी अष्टमी और नवमी को दो दिन विशाल मेला लगता है।  यह मन्दिर साम्प्रदायिक सदभावाना की बहुत बड़ी मिसाल है। इस मन्दिर पर सभी धर्मों के लोगों की श्रद्धा है और सभी अपना शीश नवाते है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण बादशाह अकबर के आदेश पर बीकानेर रियासत के छठे महाराजा राम सिंह ने करवाया था। 

इस ऎतिहासिक मन्दिर की बनावट दूसरे स्थानों के मन्दिरों से भिन्न है। मन्दिर का ग़ुम्बज़ मस्जिद की तरह बना हुआ है। इस मन्दिर की स्थापना की घटना भी बड़ी रोचक बताई जाती है। बादशाह अकबर एक बार बीकानेर के राजा रामसिंह के साथ इस क्षेत्र से गुज़रे। उस समय यहां सघन वन था। भूख प्यास से बेहाल वे लोग जब वर्तमान मन्दिर स्थल के नज़दीक पहुंचे तो उन्हें टीले पर एक औरत खड़ी दिखाई दी। उन्होंने अपनी भूख प्यास का जिक्र करते हुए भोजन पानी की व्यवस्था करने का अनुरोध किया। उस महिला ने तुरन्त घने बीहड़ जंगल में उनके खाने पीने की व्यवस्था कर दी। इस पर महाराजा अकबर आश्चर्य चकित रह गए। उन्होंने उस महिला को दैवी शक्ति माना तथा अपनी ओर से सेवा करने का अवसर देने का आग्रह किया। इस पर उस महिला ने वहां मां काली का मन्दिर बनाने को कहा। तब अकबर ने राजा रामसिंह को यह मन्दिर बनाने का आदेश दिया। कहते हैं कि यह मन्दिर तब का बना हुआ है।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख , इसाई सभी के लिए भद्रकाली आराध्य देवी है। सभी तरह के धर्मावलम्बी यहां एक ही कतार में खड़े होकर मां भद्रकाली के दर्शन करते हैं और एक ही स्थान पर प्रसाद ग्रहण करते हैं। यहां से प्रत्येक व्यक्ति एकता और भाई चारे का सन्देश लेकर जाता है। वर्तमान में इस मन्दिर के रखरखाव का जिम्मा राजस्थान देव स्थान विभाग का है।  लेकिन यह विभाग राजस्व एकत्र करने के कार्य को ही प्रमुखता देता है। श्रद्धालुओं की सुविधाओं के लिए शहर की समाज सेवी संस्थाएं मेले के दिनों में दिन रात जुटी रहती है।
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बुधवार, 6 अप्रैल 2011

सज़ा ( लघु कथा)


      
" देखो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं, लेकिन शर्त ये है कि तुम कहानी सुनते समय "हूं" जरूर कहते जाओगे।"
" ठीक है भई ठीक है। मैं, "हूं" कहता जाऊंगा। तुम कहानी तो सुनाओ !"
"सुनाऊं ?"
"हूं"
"पिछले दिनों, नगर निगम के चुनाव थे।"
"हूं"
"तो उस चुनाव में मेरा छोटा भाई भी ,चुनाव जीत गया।"
"हूं"
"कुछ दिन विजयोल्लास चलता रहा।"
"हूं"
"मेरी छुट्टियां खत्म हो गईं। मै अपनी ड्यूटी पर वापस लौट गया। अब सरकारी नौकरी है कोई प्राईवेट धन्धा तो है नहीं। घर सौ किलो मीटर दूर नौकरी करते दस बरस बीत गए।"
"हूं"
"वापस नौकरी पर लौटते हुए कल्पना करने लगा कि छोटा भाई चुनाव जीता है। अब तो उसके प्रभाव से अपने घर के आसपास तबादला करवा लूंगा।"
"हूं"
"जब मैं अपने दफ़्तर ड्यूटी पर पंहुचा, तो मेरे हाथ में एक पत्र थमा दिया गया।"
"हूं"
"वह मेरे तबादले के आदेश थे।"
"तो तबादला हो गया ?"
"सुनो !"
"हूं"
"वह मेरे तबादले के आदेश ही थे, लेकिन..।’
"लेकिन क्या ?"
"अब मेरा तबादला और भी दूर एक नई और अनजान जगह पर कर दिया गया।"
"हूं"
"पता चला कि मेरा छोटा भाई, जीतने के बाद विपक्ष के खेमे में चला गया।"
"हूं" 
"और सज़ा मुझे दे दी गई।...... कहानी खत्म!"
"लो यह भी कोई कहानी है।"
"यही तो आज की कहानी है, जो समानान्तर चलती रहती है।"

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गुरुवार, 31 मार्च 2011

दूध को कृत्रिमता से बचाने की कवायद में राठ


दूधों नहाओ पूतों फलो। यह आशीर्वचन अब बीते ज़माने की बात होकर रह गया है। भौतिकता की दौड़ मैं जहां दूध जैसा पौष्टिक द्रव्य कृत्रिमता के बर्तन में सिमट कर रह गया है, वहीं बढती जनसंख्या के विस्फोटक दौर में परिवार को सीमित रखना जरूरी हो गया है। देश की जनसंख्या बढने के साथ-साथ कई जरूरी चीज़ों के अलावा दूध की खपत भी बढी है। इसी कारण दूध का उत्पादन बढाने के कई तरीके अपनाए जाने लगे। मशीनीकरण के माध्यम से दूध भी थैलियों में पैक होकर बाजारों में आने लगा जो काफी हद तक लोगों की जरूरत को पूरा करने में सहायक सिद्ध हो रहा है। लेकिन ताजे दूध की परम्परा को कायम रखने में वर्षों पूर्व हनुमान गढ में आकर बसे मुस्लिम गौपालक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
रियासतकाल में सिंचाई प्रणाली के विकास से पहले इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य धंधा पशुपालन ही था। क्षेत्र की अधिकतर भूमि बारानी थी और पूर्णतया वर्षा पर ही निर्भर थी। इस लिये पशुओं के लिए चरागाह की कोई समस्या नहीं थी।तब हनुमानगढ के चारों ओर घना बीहड़ हुआ करता था। इसी बीहड़ से होकर घग्घर नदी का पानी गुज़रता था। उन दिनों इस क्षेत्र में औसत वर्षा हुआ करती थी, जिससे पशुओं को प्राकृतिक घस फूस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हुआ करता था।
उन्हीं दिनों बीकानेर और लूणकरनसर क्षेत्र में गौपालक अपनी गाएं लेकर इस क्षेत्र में आया करते थे।शुरूआती दिनों दिनों में बकरियों और भेड़ों के रेवड़ के रेवड़ भी वर्षा काल और बसंन्त ऋतु में यहां दिखाई देते थे। गौपालकों में मुख्यतया लूणकरनसर तहसील क्षेत्र के राठ मुसलमान इस इलाके को अपनी शरणस्थली बनाते रहे हैं। इस तहसील के जैतपुर टाहलीवाला,खुमाना, मनोहरिया बिलौचां वाली, खरबारा तथा महाजन आदि गांवों व कस्बों के मुसलमान गौपालक कफी अर्से से पानी और चारे की बहुतायत के कारण यहां आते रहे। जब उन्हें अपने गांवों में वर्षा होने की खबर यहां मिलती तो वे अपने पशुओं को लेकर गांव लौट जाते। लेकिन समय में आए बदलाव के साथ इनमें भी अधिकांश ने हनुमानगढ को ही अपना स्थाई निवास बना लिया है।
वर्षों पूर्व हनुमानगढ की दुर्गा कालोनी में छप्पर बना कर रहने वाले ये मुस्लिम गौपालक आज शहर के सैक्टर बारह, प्रेमनगर तथा बिजली कालोनी के समीप पक्के मकान बना कर प्रगतिशीलता की दौड़ में शामिल हो चुके हैं।वर्षों पूर्व यहां आकर स्थाई रूप से बसे करीब तीन सौ परिवारों का कबीला अब वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। अब करीब इनके तीस हजार परिवार हनुमानगढ के अलावा पंजाब के अबोहर, फाजिल्का, फिरोजपुर तथा लुधियाना तक के शहरों में जा बसे हैं।  इनमें से अधिकांश मूलतः मनोहरिया एवं खुमाना गांव के हैं। वर्षों पूर्व इनकी पुश्तैनी भूमि आवप्त हो गई। मुआवजे से प्राप्त राशि का उपयोग इन्होंने यहां पक्के बना कर किया। पंजाब के शहरों में भी इन्होनें अपने स्थाई ठिकाने बना लियें हैं। वर्तमान समय में हनुमानगढ सहित पंजाब के शहरों में डेअरी विकास में राजस्थान के इन राठ मुसलमान भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। जब तक वे अपने गांवों से हनुमानगढ आकर बसे थे वे तब तक वे केवल गौपालक के रूप में ही जाने जाते थे। लेकिन जब इन्होंने पंजाब में प्रवेश किया तब वहां डेयरी के तौर तरीके पंजाब की तरह अपनाने शुरू कर दिये। चूंकि पंजाब में भैंस के दूध का प्रचलन ज्यादा है, इस लिए इन राठ गौपलकों ने पंजाब में रह कर भैंस पालन शुरू कर दिया। अपनी पशुपालन की कला को उन्होनें नया रूप देकर पंजाब में दुग्ध व्यवसाय को अपनाया। अब पंजाब के अनेक क्षेत्र इनकी दूध आपूर्ती से प्रभावित होते हैं।
इन गौपालकों की पुरानी पीढी बिल्कुल अनपढ और देहाती परम्पराओं पर चलने वाली थी। उनकी ओर से बेचे जाने वाले दूध का हिसाब किताब खरीददार पर ही निर्भर रहता था। लेकिन नई पीढी को नए जमाने की हवा लग चुकी है। पुरानी पीढी की वेशभूषा आज भी मर्दों में वही तहमत, कुर्ता और पगड़ी तथा औरतों में घेरदार घाघरा, पूरी बाजू का लम्बा कुर्ता और दुपट्टा है। इनमें नई पीढी की महिलाएं सलवार-कमीज़ और दुपट्टा तथा नौजवान पेंट-शर्ट पहनने लगे हैं। पुरानी पीढी के लोग जहां साईकिल चलाने से भी डरते थे, आज उनकी नई पीढी के अधिकांश युवकों के पास मोटर साईकिल हैं। पंजाब के कई इलाकों में तो इन पशुपालकों की नई पीढी दूध की सप्लाई के लिए चार पहिया वाहनों का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है।
पुरानी पीढी के लोगों का जो मुख्य हुनर को मिलना चाहिये था वह था पशुओं की बीमारियों के प्रति इन लोगों की असीम जनकारी। आज जो डिग्रीधारी डाक्टर और वैद्य किसी पशु के रोग का सही निदान और उपचार नहीं कर पाते जबकि उनमें से अधिकतर पुरानी पीढी के इन गौपालकों के परिवारों के मुखिया बिना किसी वैज्ञानिक उपकरण के केवल देख या हाथ से छूकर रोग ढूंढ लेते हैं। पुरानी पीढी की यह विलक्षण प्रतिभा आश्चर्य चकित कर देने वाली है। कहा जाता है कि गर्भवती गाय के पेट पर हाथ फेर कर ये लोग भविष्यवाणी कर देते थे कि गाय बछड़ा देगी या बछिया। वह भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य होती थी। 
नई पीढी में इस विलक्षण प्रतिभा का हृस होता जा रहा है।अब ऎसे सयानों की संख्या नगण्य हो चाली है जो अपने पशुओं के रोगों का स्वतः इलाज़ कर लें। वैज्ञानिक तौर तरीकों ने इन्हें भी प्रभावित कर सुविधावादी बना दिया है। पूर्व में इन गौपालक परिवारों का संचालन अधिकतर महिलाओं द्वारा ही किया जाता था। घर की आमद-खर्च का हिसाब रखना , परिवार के सदस्यों का उचित भरण-पोषण और पशुओं के चारा आदि की व्यवस्था भी इनकी ही जिम्मे रह्ती थी। पुरूषों का काम गायों की सार-सम्भाल और चरागाह तक ही लाना ले जाना होता था। तब गायों से प्राप्त दूध के विक्रय-विपणन का समस्त कार्य महिलाएं ही किया करती थीं। अब यह कार्य पुरूष करने लगे हैं। हालांकि आर्थिक पक्ष पर महिलाओं का प्रभाव आज भी स्पष्टतया दृष्टिगोचर होता है। 
   फसल की भूसी को कीमती बना दियाः- गौपालक फ़लक शेर बताते हैं कि यहां घग्घर नाली क्षेत्र में पैदा होने वाले चावल की भूसी क्षेत्र के किसान इस लिए जला दिया करते थे कि उनका खरीददार नहीं होता था। उन्हें अगली फसल हेतु खेत खाली करने के लिए भूसी को जलाना पड़ता था। जब ये गौपालक यहां आने लगे तो इस भूसी को इन्होंने चारे के रूप में उपयोग करना शुरू कर दिया। तब से इस भूसी का भरपूर कारोबार हो रहा है। उन्होंने बताया कि चावल की भूसी में गेहूं की तूड़ी जितने ही गुण हैं। उन्होंने बताया कि जब चने के दाम गेहूं से कम थे तब से अब तक पशुओं को यही जिन्स खिलाया जा रहा है।**    

मंगलवार, 29 मार्च 2011

धोरों में दूध की नहर


                                                                                                                                                    
श्रीगंगानगर जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड, "गंगमूल" डेअरी ने श्वेत क्रान्ति को लेकर क्षेत्र में न केवल अहम भूमिका निभाई है बल्कि दुग्ध उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हितों के लिए महत्वपूर्ण कड़ी का काम किया है। गंगमूल ने अपने सफ़र में उच्चगुणवत्ता के अनेक आयाम व कीर्तिमान स्थापित किए हैं, वहीं दुग्ध उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हित में अनेक योजनाओं को मूर्त रूप दिया है। कुशल अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के संचालक मण्डल की सूझबूझ से यह सहकारी डेयरी निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं। गंगमूल को अन्तर्राष्ट्रीय मानक आईएसओ 9001 और एचएसीसीपी 15000 योग्यता प्रमाण पत्र हासिल है।
      कुछ वर्ष पूर्व हनुमानग्ढ तथा श्रीगंगानगर जिले के किसान दूध बेचना पंसन्द नहीं करते थे। लेकिन निरन्तर घटती खेती की आय और विभिन्न प्राकृतिक प्रकोप के कारण किसानों का रुझान डेयरी व्यवसाय की ओर बढ रहा है।गंगमूल ने भी दुग्ध उत्पादकों को प्रोत्साहन दिया जिसके नतीजतन इलाके में दूध का कारोबार नए रूप में उभर कर सामने आया। ग्रामीण स्तर पर दुग्ध व्यवसाय निरन्तर आय और स्वावलम्बन का सर्वोत्तम साधन माना गया। गंगमूल ने ग्रामीण क्षेत्रों में दूध व्यवसाय को खूब बढावा दिया। इलाके की श्वेत क्रांति का श्रेय गंगमूल के आलावा ग्रामीणों को भी जाता है जिन्होंने लगन और मेहनत से गंगमूल के वटवृक्ष को सींच कर बड़ा करने में अपना पसीना बहाया।   
      गंगमूल डेअरी की शुरुआत अप्रैल 1979 में दस संकलन केन्दों से एक पथ बना कर 300 लीटर दूध प्रति दिन संकलित कर की गई थी। तत्पश्चात 30 जनवरी 1984 को श्रीगंगानगर दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लि०. हनुमानगढ का पंजीकरण हुआ जिसने आज वट वृक्ष का रूप धारण कर लिया है और इसकी शाखाएं हनुमानगढ व श्रीगंगानगर जिले की समस्त तहसीलों के दूर- दराज़ के गांवों व ढाणियों तक फैली हुई हैं। वर्तमान में गंगमूल के अन्तर्गत 1025 पंजीकृत दुग्ध समितियां कार्यरत हैं। इनमें 271 महिला समितियां हैं। इन समितियों के माध्यम से वर्तमान में करीब डेढ लाख लीटर दूध प्रतिदिन संकलित किया जा रहा है।
श्रीगंगानगर जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लि०."गंगमूल" का मुख्य कार्यालय हनुमानगढ में स्थित है। इसके अधिनस्थ हनुमानगढ जिले के भादरा, नोहर तथा श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ, पदमपुर व घड़साना में दुग्ध अवशीतन केन्द्र कार्यरत हैं। इनमें आसपस के क्षेत्रों का दुग्ध संकलित कर शीर्ष कार्यालय हनुमानगढ को भेजा जाता है।
गंगमूल का मुख्य उद्देश्यः----
गंगमूल का मुख्य उद्देश्य दूर दराज़ के इलाकों में रहने वाले किसानों व दुग्ध उत्पादकों को उत्पादित दूध का उचित मूल्य दिलवाना तथा साथ में नई तकनीकी जानकारियों से अवगत करवा कर उनके दूध उत्पादन में वृध्दि करना है। यह डेयरी दुग्ध उत्पादकों के दूध से उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाले दुग्ध उत्पाद उचित मूल्य पर उपलब्ध करवा रही है। इनमें दूध, फ्लेवर्ड मिल्क, छाछ, लस्सी, पनीर, घी, मक्खन व दही आदि शामिल हैं।
कैसे जुड़ सकते हैं गंगमूल सेः--
किसी भी क्षेत्र में रहने वाला पशु पालक गंगमूल के अधिनस्थ दुग्ध समिति का सदस्य बन सकता है। बशर्ते उसके पास कम से कम एक दूध देने वाली गाय हो, उसी गांव का रहने वाला हो तथा 90 दिन तक दूध समिति पर दूध दिया हो। सदस्य बनने के उपरान्त वह संघ द्वारा देय सुविधाओं का लाभ उठा सकता हैं। 
दूध का भुगतानः- गंगमूल द्वारा माह में तीन बार दुग्ध उत्पादकों को दूध का भुगतान किया जाता है। डेयरी किसी भी समिति का भुगतान उसके नजदीकी बैंक के माध्यम से करती है। गंगमूल द्वारा दुग्ध उत्पादकों से किसी भी प्रकार का नकद लेनदेन नहीं किया जाता है।
    गंगमूल द्वार देय सुविधाएंः--
1- प्राथमिक पशु चिकित्साः- गंगमूल के अन्तर्गत कार्यरत प्रत्येक दुग्ध समिति पर पशुपालकों के लिए प्राथमिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध रहती है। प्रत्येक समिति पर कार्यरत सचिव को पशुओं के रोगों के प्राथमिक उपचार हेतु दी जाने वाली समस्त दवाईयों का ज्ञान होता है। बदले में पशुपालकों से नाम मात्र की राशि ली जाती है।
2- टीकाकरणः- पशुओं मे होने वाले विभिन्न संक्रामक रोग, जैसे मुहाव, लंगड़ा बुखार व गलघोटू आदि के लिए समितिवार शिविर लगा कर टीकाकरण किया जाता है ताकि पशुपालकों को आर्थिक हानि न हो तथा टीकाकरण के लिए दूर नहीं जाना पड़े।
3- आपतकालीन पशु चिकित्साः- समिति के सदस्यों को उनका पशु अत्यधिक बीमार होने पर  उन्हें उनके घर ही आपात चिकित्सा उपलब्ध करवाई जाती है। सूचना प्राप्त होते ही विशेषज्ञों की सम्बधित समिति के लिए रवाना हो जाएगी तथा मौके पर पहुंच कर बीमार पशु का इलाज़ शुरु कर देगी। 
4- बांझ निवारण शिविरः-गंगमूल डेयरी की ओर से समितियों की आवश्यकता अनुसार संघ के कुशल चिकित्सकों द्वारा पशु बान्झ निवारण शिविरों का आयोजन किया जाता है।ये शिविर पशुपालकों के हित में लगाए जाते हैं ताकि पशु बांझ नहीं रहें तथा दूध उत्पादकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ हो।
5- संतुलित सरस पशु आहारः- दुग्ध उत्पादकों को गंगमूल डेयरी की ओर से उच्च गुण्वत्ता वाला सरस सन्तुलित पशु आहार उनकी देहलीज पर उपलब्ध करवाया जाता है। इसके अलावा उचित मूल्य पर दुग्ध समितियों के माध्यम से आयोडीन नमक का वितरण भी किया जाता है।
6- हरे चारे के बीजः- डेयरी की ओर से समय समय पर उन्नत किस्म के हरे चारे के बीज जैसे, जई, जवार, बरसीम आदि दुग्ध उत्पादकों को उपलब्ध करवाए जाते हैं। इसके अलावा हरे चारे के प्रदर्शन हेतु मिनी किट का निःशुल्क वितरण भी किया जाता है। 
7-पशु खरीद हेतु लोनः- दुग्ध उत्पादक जो समिति के सदस्य हैं उन्हें डेयरी द्वारा बैंक के माध्यम से पशु लोन दिलवाया जाता है। इससे पशु पालकों को अपने दूध के व्यवसाय को बढाने के अवसर प्राप्त होते हैं।
8-संयत्र भ्रमणः- गंगमूल डेयरी से जुड़े दुग्ध उत्पादकों को समय समय पर डेयरी संयत्र का भ्रमण करवाया जाता है। साथ ही दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हेतु प्रशिक्षण भी दिया जाता है ताकि उन्हें और अधिक लाभ हो सके तथा वे अन्य सुविधाओं का भी लाभ उठा सकें।
9-अन्य लाभः-गंगमूल डेयरी से जुड़े पशु पालकों को डेयरी द्वारा यूरिया, मोलेसिस ब्लाक, कृमिनाशक दवा तथा सरस मिनरल मिक्श्चर आदि भी उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाए जाते है। 
इन तमाम सुविधाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इन सब वस्तुओं के लिए दूध उत्पादक को कहीं भी नगद राशि नहीं चुकाने पड़ती है। उनके द्वारा देय राशि उनके डेयरी को दिये जाने वाले दूध के भुगतान में समायोजित कर दी जाती है।
सामाजिक सरोकारः- गंगमूल द्वारा अपने दुग्ध उत्पादकों के सामाजिक व शैक्षणिक उत्थान हेतु समिति स्तर पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। छात्रवृति के अलावा अनेक प्रतियोगिताएं भी आयोजित कर पशुपालकों के बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता है। 
गंगमूल के सहकारी दूध का सफ़रः-गंगमूल को प्राप्त होने वाले दूध का पशु पालक के घर से लेकर विपणन तक का सफ़र पूर्णतया पारदर्शी रहता है। गंगमूल से सम्बन्धित दुग्ध उत्पादक अपना दूध नजदीकी डेयरी के मिल्क कलैक्शन सैन्टर में लेकर आता है। यहां उनके दूध का आधुनिक कम्प्यूट्राइज्ड मशीन से जांच कर मौके पर ही वज़न किया जाता है। उसी समय दुग्ध उत्पादक को उसी कम्प्यूटर से प्राप्त पर्ची दी जाती है जिस पर दूध के सम्बध में पूर्ण ब्यौरा अंकित रहता है।आजकल गंगमूल द्वारा समितियों में ईएमटी, एमसीएस तथा एएमसीयू उपकरण दिए गए हैं, जिनसे अनपढ व्यक्ति भी फैट की जानकारी ले सकता है और इस विधि में पारदर्शिता भी रहती है। इस मिल्क कलैक्शन सैन्टर से यह दूध उसके नज़दीकी "बल्क मिल्क कलैक्शन सैन्टर"(बीएमसी) तक शीघ्र पहुंचाने की व्यवस्था रहती है। बल्क मिल्क कलैक्शन सैन्टर(बीएमसी) मिनी चिलिंग प्लान्ट होता है जिसमें समितियों से प्राप्त दूध की ताज़गी और पौष्टिकता बरकरार रखने के लिए ठंडा रखने की व्यवस्था रहती है। इसके बाद बीएमसी में एकत्र दूध को एक या दो दिन के भीतर नज़दीकी दुग्ध अवशीतन केन्द्र में मिनी टैंकरों के माध्यम से भिजवा दिया जाता है। वर्तमान में हनुमानगढ जिले के भादरा व नोहर तथा श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ, पदमपुर व घड़साना तहसील मुख्यालयों पर अवशीतन केन्द्र स्थित हैं। अवशीतन का दूध बड़े टैकरों द्वारा हनुमानगढ स्थित मुख्य सयंत्र में पहुंचाया जाता है। हनुमानगढ के आसपास के बीएमसी तथा मिल्क कलैक्शन सैंटरों का दूध सीधे मुख्य सयंत्र में पहुंचता है। मुख्य सयंत्र में कैन तथा दूध टैंकरों से आने वाले दूध की कड़ी जांच की जाती है। सबसे पहले आने वाले दूध का सैंपल लेकर यह जांचा जाता है कि इसमें कोई भी ऎसा तत्व तो मौज़ूद नहीं है जो मिश्रण के बाद दूसरे दूध को खराब कर दे। इसकी पौष्टिकता की जांच के बाद इसे फिल्टर किया जाता है। फिल्ट्रेशन के विभिन्न चरणों से गुजरने के बाद घी, दूध, पाउडर, दही, छाछ, लस्सी, पनीर आदि उत्पाद की प्रोसेसिंग अलग अलग की जाती है।
विपणनः- श्रीगंगानगर जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ का दूसरा स्तम्भ, दुग्ध विपणन भी मजबूती से कार्य कर रहा है। गंगमूल द्वारा दुग्ध उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता तथा उचित मूल्य पर सरस के विभिन्न उत्पाद उनके नजदीकी सरस मिल्क बूथ पर उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। गंगमूल द्वारा दिल्ली शहर के लिए सरस दूध की पैकिंग आपूर्ती रेफ्रिजरेटिड वाहन से निरन्तर की जा रही है। 
इसके अलावा क्षेत्र में स्थित भारतीय सेना के जवानों को उनकी मांग के अनुसार दूध व दूध उत्पाद उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। श्रीगंगानगर व हनुमानगढ जिला मुख्यालय सहित विभिन्न मंडियों में दुग्ध वितरण का कार्य पूर्णतया कोल्ड चेन मेन्टेन कर किया जा रहा है। इसके अलावा विपणन कार्य योजना के अन्तर्गत गंगमूल द्वारा अन्य कई कदम उठाए जा रहे हैं। स्वास्थ्यवर्धक दूध के बारे में उपभोक्ताओं को जानकारी प्रदान करने के लिए समय समय पर "दूध का दूध- पानी का पानी" कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्कूल, कालेज तथा सामान्य नागरिकों को आमंत्रित कर समय समय पर प्लान्ट का भ्रमण करवा कर गंगमूल की कार्यप्रणाली से अवगत करवाया जाता है। इसके अलावा अन्य संस्थाओं द्वारा अयोजित कार्यक्रमों में उत्पादों की प्रदर्शनी लगा कर उनकी ख़ासियतों के बारे में बताया जाता है तथा विभिन्न मेलों मे स्टाल लगा कर उत्पादों का प्रचार किया जाता है। 




स्वच्छ दुग्ध उत्पादन पर बलः- ताजगी और शुद्धता को प्रमुखता देते हुए गंगमूल ने हर वर्ष आधुनिकीकरण को अपना प्रमुख लक्ष्य बनाया। स्वच्छ दुग्ध उत्पादन हेतु गंगमूल द्वारा समय समय पर विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाते हैं। इसी क्रम में दुग्ध उत्पादकों को निरन्तर प्रशिक्षण दिया जाता है, वहीं उन्हें स्टील के बर्तन व साफ किट का वितरण भी किया जाता है। इसके अलावा प्रत्येक अवशीतन केन्द्र तथा मुख्य सयंत्र में कैन वाशर स्थापित हैं। मिल्क कलेक्शन सैन्टर में एकत्र दूध को बीएमसी, अवशीतन केन्द्र या मुख्य सयंत्र तक पहुंचाने के लिए वैक्टीरिया मुक्त कैन का प्रयोग किया जाता है। कैन से दूध परिवहन करने के बाद हर बार उनकी धुलाई सफाई का कार्य अवशीतन केन्द्रों व मुख्य सयंत्र के कैन वाशर पर होता है जो दूध की स्वच्छता का आरम्भिक चरण है।  ***************************************************

सोमवार, 28 मार्च 2011

प्रसाद ( लघु कथा)


 उस दिन मंगलवार था। हनुमान मंदिर के नज़दीक एक देहाती ठर्रा पी कर बेसुध पड़ा था। तभी एक पुलिस कान्स्टेबल भी उधर आ धमका। बेसुध पड़े शराबी को देख कर वह गुर्राया-" कौन है... बे तूं ?"
शराबी ने आंखे झपझपाईं। झुरझुरी ली। बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठ गया। मौके पर भीड़ जमा हो गयी। कान्स्टेबल ने तैश में आकर एक लात शराबी की कमर में दे मारी। फिर उसे हाथ से उठाने का नाटक करते हुए, उसकी जेब टटोली। शराबी की जेब खाली पाकर कांन्स्टेबल और भी तैश में आ गया। शराबी को तीन-चार घूंसे जमा कर बोला-" स्साला... मंगल के रोज़ भी दारु पी कर आ गया।"
फिर शराबी को वही छोड़ वह कांन्स्टेबल धन्ना हलवाई की दुकान पर जा रुका-"अरे भाई धन्ना..पांच रुपये का प्रसाद देना !"
" अरे ! मालिक...आज पांच रुपये का ही क्यों ? हर मंगलवार को तो ग्यारह रुपये का प्रसाद चढाते हैं आप ?"      हलवाई ने आंखे तरेर कर पूछा।
" लेकिन आज तो आधा ही प्रायश्चित करना है। हाथ मारा.. लेकिन जेब खाली थी। इसलिए...आज पांच का ही दो!" इतना कहते हुए कांन्स्टेबल ने पांच रुपये का सिक्का धन्ना हलवाई की तरफ उछाल दिया।****

मंगलवार, 15 मार्च 2011

अपनों के बीच का सुख


 मेरे शहर के एक सरकारी दफ्तर की कैंटीन में अपने दोस्तों के साथ
 बैठा मैं चाय पी रहा था। कड़ाके की ठंड थी। चाय की चुस्की के साथ
 मैं दफ्तर की चारदीवारी में  चारों तरफ हरेभरे पेड़- पौधों को निहार रहा 
 था।उसी समय एक गडरिया अपनी भेड़ बकरियों को हांकता हुआ चारदीवारी 
 में घुस आया। उसकी भेड़ बकरियां चारों तरफ फैल कर पेड़ पौधों के पत्तों को
 खाने लगी। इस बीच एक हट्टा कट्टा बकरा रेवड़ से दूर शीशम के पेड़ 
 की तरफ चला गया। वह शीशम के पेड़ के तने पर अपने आगे वाले पैर
 टिका कर मज़े से पेड़ की हरी-हरी पत्तियां खाने लगा। 
 भेड़ बकरियों को हरियाली उजाड़ते देख सरकारी दफ्तर का चपरासी 
 गडरिये पर गुस्से से चिल्लाने लगा। इस पर गडरिया घबरा गया।
 उसी समय वह अपनी भेड़ बकरियों को हांक कर चारदीवारी से बाहर
 उत्तर दिशा की ओर चला गया। लेकिन जाते हुए वह उस बकरे को भूल
 गया जो रेवड़ से अलग शीशम के पेड़ की पत्तियां खा रहा था ।  उस 
 बकरे को भी रेवड़ के वहां से जाने का पता नहीं चला। बकरे ने पेट भर
 हरी पत्तियां खा कर अपने आगे वाले पैर  पेड़ से नीचे उतारे। इसके 
 बाद वहां देखा जहां उसने रेवड़ और गडरिये को छोड़ा था। रेवड़ और
 गडरिये को वहां से गायब पाकर वह घबरा गया।वह चिल्लाता हुआ 
 चरदीवारी के गेट की तरफ भागा। गेट के पास जाकर उसने
 पैरों के निशान देखे, उन्हें सूंघा और मिमियाता हुआ उत्तर दिशा की तरफ 
 दौड़ गया। तब वहां मौज़ूद लोग उस जीव की अपने परिवार और कुटुम्ब
 के प्रति आसक्ति और लगाव को देख कर दंग रह गए। सब के लिए 
यह एक अद्भुत नज़ारा था। 
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