श्रीगंगानगर जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड, "गंगमूल" डेअरी ने श्वेत क्रान्ति को लेकर क्षेत्र में न केवल अहम भूमिका निभाई है बल्कि दुग्ध उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हितों के लिए महत्वपूर्ण कड़ी का काम किया है। गंगमूल ने अपने सफ़र में उच्चगुणवत्ता के अनेक आयाम व कीर्तिमान स्थापित किए हैं, वहीं दुग्ध उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हित में अनेक योजनाओं को मूर्त रूप दिया है। कुशल अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के संचालक मण्डल की सूझबूझ से यह सहकारी डेयरी निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं। गंगमूल को अन्तर्राष्ट्रीय मानक आईएसओ 9001 और एचएसीसीपी 15000 योग्यता प्रमाण पत्र हासिल है।
कुछ वर्ष पूर्व हनुमानग्ढ तथा श्रीगंगानगर जिले के किसान दूध बेचना पंसन्द नहीं करते थे। लेकिन निरन्तर घटती खेती की आय और विभिन्न प्राकृतिक प्रकोप के कारण किसानों का रुझान डेयरी व्यवसाय की ओर बढ रहा है।गंगमूल ने भी दुग्ध उत्पादकों को प्रोत्साहन दिया जिसके नतीजतन इलाके में दूध का कारोबार नए रूप में उभर कर सामने आया। ग्रामीण स्तर पर दुग्ध व्यवसाय निरन्तर आय और स्वावलम्बन का सर्वोत्तम साधन माना गया। गंगमूल ने ग्रामीण क्षेत्रों में दूध व्यवसाय को खूब बढावा दिया। इलाके की श्वेत क्रांति का श्रेय गंगमूल के आलावा ग्रामीणों को भी जाता है जिन्होंने लगन और मेहनत से गंगमूल के वटवृक्ष को सींच कर बड़ा करने में अपना पसीना बहाया।
गंगमूल डेअरी की शुरुआत अप्रैल 1979 में दस संकलन केन्दों से एक पथ बना कर 300 लीटर दूध प्रति दिन संकलित कर की गई थी। तत्पश्चात 30 जनवरी 1984 को श्रीगंगानगर दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लि०. हनुमानगढ का पंजीकरण हुआ जिसने आज वट वृक्ष का रूप धारण कर लिया है और इसकी शाखाएं हनुमानगढ व श्रीगंगानगर जिले की समस्त तहसीलों के दूर- दराज़ के गांवों व ढाणियों तक फैली हुई हैं। वर्तमान में गंगमूल के अन्तर्गत 1025 पंजीकृत दुग्ध समितियां कार्यरत हैं। इनमें 271 महिला समितियां हैं। इन समितियों के माध्यम से वर्तमान में करीब डेढ लाख लीटर दूध प्रतिदिन संकलित किया जा रहा है।
श्रीगंगानगर जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लि०."गंगमूल" का मुख्य कार्यालय हनुमानगढ में स्थित है। इसके अधिनस्थ हनुमानगढ जिले के भादरा, नोहर तथा श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ, पदमपुर व घड़साना में दुग्ध अवशीतन केन्द्र कार्यरत हैं। इनमें आसपस के क्षेत्रों का दुग्ध संकलित कर शीर्ष कार्यालय हनुमानगढ को भेजा जाता है।
गंगमूल का मुख्य उद्देश्यः----
गंगमूल का मुख्य उद्देश्य दूर दराज़ के इलाकों में रहने वाले किसानों व दुग्ध उत्पादकों को उत्पादित दूध का उचित मूल्य दिलवाना तथा साथ में नई तकनीकी जानकारियों से अवगत करवा कर उनके दूध उत्पादन में वृध्दि करना है। यह डेयरी दुग्ध उत्पादकों के दूध से उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाले दुग्ध उत्पाद उचित मूल्य पर उपलब्ध करवा रही है। इनमें दूध, फ्लेवर्ड मिल्क, छाछ, लस्सी, पनीर, घी, मक्खन व दही आदि शामिल हैं।
कैसे जुड़ सकते हैं गंगमूल सेः--
किसी भी क्षेत्र में रहने वाला पशु पालक गंगमूल के अधिनस्थ दुग्ध समिति का सदस्य बन सकता है। बशर्ते उसके पास कम से कम एक दूध देने वाली गाय हो, उसी गांव का रहने वाला हो तथा 90 दिन तक दूध समिति पर दूध दिया हो। सदस्य बनने के उपरान्त वह संघ द्वारा देय सुविधाओं का लाभ उठा सकता हैं।
दूध का भुगतानः- गंगमूल द्वारा माह में तीन बार दुग्ध उत्पादकों को दूध का भुगतान किया जाता है। डेयरी किसी भी समिति का भुगतान उसके नजदीकी बैंक के माध्यम से करती है। गंगमूल द्वारा दुग्ध उत्पादकों से किसी भी प्रकार का नकद लेनदेन नहीं किया जाता है।
गंगमूल द्वार देय सुविधाएंः--
1- प्राथमिक पशु चिकित्साः- गंगमूल के अन्तर्गत कार्यरत प्रत्येक दुग्ध समिति पर पशुपालकों के लिए प्राथमिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध रहती है। प्रत्येक समिति पर कार्यरत सचिव को पशुओं के रोगों के प्राथमिक उपचार हेतु दी जाने वाली समस्त दवाईयों का ज्ञान होता है। बदले में पशुपालकों से नाम मात्र की राशि ली जाती है।
2- टीकाकरणः- पशुओं मे होने वाले विभिन्न संक्रामक रोग, जैसे मुहाव, लंगड़ा बुखार व गलघोटू आदि के लिए समितिवार शिविर लगा कर टीकाकरण किया जाता है ताकि पशुपालकों को आर्थिक हानि न हो तथा टीकाकरण के लिए दूर नहीं जाना पड़े।
3- आपतकालीन पशु चिकित्साः- समिति के सदस्यों को उनका पशु अत्यधिक बीमार होने पर उन्हें उनके घर ही आपात चिकित्सा उपलब्ध करवाई जाती है। सूचना प्राप्त होते ही विशेषज्ञों की सम्बधित समिति के लिए रवाना हो जाएगी तथा मौके पर पहुंच कर बीमार पशु का इलाज़ शुरु कर देगी।
4- बांझ निवारण शिविरः-गंगमूल डेयरी की ओर से समितियों की आवश्यकता अनुसार संघ के कुशल चिकित्सकों द्वारा पशु बान्झ निवारण शिविरों का आयोजन किया जाता है।ये शिविर पशुपालकों के हित में लगाए जाते हैं ताकि पशु बांझ नहीं रहें तथा दूध उत्पादकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ हो।
5- संतुलित सरस पशु आहारः- दुग्ध उत्पादकों को गंगमूल डेयरी की ओर से उच्च गुण्वत्ता वाला सरस सन्तुलित पशु आहार उनकी देहलीज पर उपलब्ध करवाया जाता है। इसके अलावा उचित मूल्य पर दुग्ध समितियों के माध्यम से आयोडीन नमक का वितरण भी किया जाता है।
6- हरे चारे के बीजः- डेयरी की ओर से समय समय पर उन्नत किस्म के हरे चारे के बीज जैसे, जई, जवार, बरसीम आदि दुग्ध उत्पादकों को उपलब्ध करवाए जाते हैं। इसके अलावा हरे चारे के प्रदर्शन हेतु मिनी किट का निःशुल्क वितरण भी किया जाता है।
7-पशु खरीद हेतु लोनः- दुग्ध उत्पादक जो समिति के सदस्य हैं उन्हें डेयरी द्वारा बैंक के माध्यम से पशु लोन दिलवाया जाता है। इससे पशु पालकों को अपने दूध के व्यवसाय को बढाने के अवसर प्राप्त होते हैं।
8-संयत्र भ्रमणः- गंगमूल डेयरी से जुड़े दुग्ध उत्पादकों को समय समय पर डेयरी संयत्र का भ्रमण करवाया जाता है। साथ ही दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हेतु प्रशिक्षण भी दिया जाता है ताकि उन्हें और अधिक लाभ हो सके तथा वे अन्य सुविधाओं का भी लाभ उठा सकें।
9-अन्य लाभः-गंगमूल डेयरी से जुड़े पशु पालकों को डेयरी द्वारा यूरिया, मोलेसिस ब्लाक, कृमिनाशक दवा तथा सरस मिनरल मिक्श्चर आदि भी उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाए जाते है।
इन तमाम सुविधाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इन सब वस्तुओं के लिए दूध उत्पादक को कहीं भी नगद राशि नहीं चुकाने पड़ती है। उनके द्वारा देय राशि उनके डेयरी को दिये जाने वाले दूध के भुगतान में समायोजित कर दी जाती है।
सामाजिक सरोकारः- गंगमूल द्वारा अपने दुग्ध उत्पादकों के सामाजिक व शैक्षणिक उत्थान हेतु समिति स्तर पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। छात्रवृति के अलावा अनेक प्रतियोगिताएं भी आयोजित कर पशुपालकों के बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता है।
गंगमूल के सहकारी दूध का सफ़रः-गंगमूल को प्राप्त होने वाले दूध का पशु पालक के घर से लेकर विपणन तक का सफ़र पूर्णतया पारदर्शी रहता है। गंगमूल से सम्बन्धित दुग्ध उत्पादक अपना दूध नजदीकी डेयरी के मिल्क कलैक्शन सैन्टर में लेकर आता है। यहां उनके दूध का आधुनिक कम्प्यूट्राइज्ड मशीन से जांच कर मौके पर ही वज़न किया जाता है। उसी समय दुग्ध उत्पादक को उसी कम्प्यूटर से प्राप्त पर्ची दी जाती है जिस पर दूध के सम्बध में पूर्ण ब्यौरा अंकित रहता है।आजकल गंगमूल द्वारा समितियों में ईएमटी, एमसीएस तथा एएमसीयू उपकरण दिए गए हैं, जिनसे अनपढ व्यक्ति भी फैट की जानकारी ले सकता है और इस विधि में पारदर्शिता भी रहती है। इस मिल्क कलैक्शन सैन्टर से यह दूध उसके नज़दीकी "बल्क मिल्क कलैक्शन सैन्टर"(बीएमसी) तक शीघ्र पहुंचाने की व्यवस्था रहती है। बल्क मिल्क कलैक्शन सैन्टर(बीएमसी) मिनी चिलिंग प्लान्ट होता है जिसमें समितियों से प्राप्त दूध की ताज़गी और पौष्टिकता बरकरार रखने के लिए ठंडा रखने की व्यवस्था रहती है। इसके बाद बीएमसी में एकत्र दूध को एक या दो दिन के भीतर नज़दीकी दुग्ध अवशीतन केन्द्र में मिनी टैंकरों के माध्यम से भिजवा दिया जाता है। वर्तमान में हनुमानगढ जिले के भादरा व नोहर तथा श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ, पदमपुर व घड़साना तहसील मुख्यालयों पर अवशीतन केन्द्र स्थित हैं। अवशीतन का दूध बड़े टैकरों द्वारा हनुमानगढ स्थित मुख्य सयंत्र में पहुंचाया जाता है। हनुमानगढ के आसपास के बीएमसी तथा मिल्क कलैक्शन सैंटरों का दूध सीधे मुख्य सयंत्र में पहुंचता है। मुख्य सयंत्र में कैन तथा दूध टैंकरों से आने वाले दूध की कड़ी जांच की जाती है। सबसे पहले आने वाले दूध का सैंपल लेकर यह जांचा जाता है कि इसमें कोई भी ऎसा तत्व तो मौज़ूद नहीं है जो मिश्रण के बाद दूसरे दूध को खराब कर दे। इसकी पौष्टिकता की जांच के बाद इसे फिल्टर किया जाता है। फिल्ट्रेशन के विभिन्न चरणों से गुजरने के बाद घी, दूध, पाउडर, दही, छाछ, लस्सी, पनीर आदि उत्पाद की प्रोसेसिंग अलग अलग की जाती है।
इसके अलावा क्षेत्र में स्थित भारतीय सेना के जवानों को उनकी मांग के अनुसार दूध व दूध उत्पाद उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। श्रीगंगानगर व हनुमानगढ जिला मुख्यालय सहित विभिन्न मंडियों में दुग्ध वितरण का कार्य पूर्णतया कोल्ड चेन मेन्टेन कर किया जा रहा है। इसके अलावा विपणन कार्य योजना के अन्तर्गत गंगमूल द्वारा अन्य कई कदम उठाए जा रहे हैं। स्वास्थ्यवर्धक दूध के बारे में उपभोक्ताओं को जानकारी प्रदान करने के लिए समय समय पर "दूध का दूध- पानी का पानी" कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्कूल, कालेज तथा सामान्य नागरिकों को आमंत्रित कर समय समय पर प्लान्ट का भ्रमण करवा कर गंगमूल की कार्यप्रणाली से अवगत करवाया जाता है। इसके अलावा अन्य संस्थाओं द्वारा अयोजित कार्यक्रमों में उत्पादों की प्रदर्शनी लगा कर उनकी ख़ासियतों के बारे में बताया जाता है तथा विभिन्न मेलों मे स्टाल लगा कर उत्पादों का प्रचार किया जाता है।
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