बैठा मैं चाय पी रहा था। कड़ाके की ठंड थी। चाय की चुस्की के साथ
मैं दफ्तर की चारदीवारी में चारों तरफ हरेभरे पेड़- पौधों को निहार रहा
था।उसी समय एक गडरिया अपनी भेड़ बकरियों को हांकता हुआ चारदीवारी
में घुस आया। उसकी भेड़ बकरियां चारों तरफ फैल कर पेड़ पौधों के पत्तों को
खाने लगी। इस बीच एक हट्टा कट्टा बकरा रेवड़ से दूर शीशम के पेड़
की तरफ चला गया। वह शीशम के पेड़ के तने पर अपने आगे वाले पैर
टिका कर मज़े से पेड़ की हरी-हरी पत्तियां खाने लगा।
भेड़ बकरियों को हरियाली उजाड़ते देख सरकारी दफ्तर का चपरासी
गडरिये पर गुस्से से चिल्लाने लगा। इस पर गडरिया घबरा गया।
उसी समय वह अपनी भेड़ बकरियों को हांक कर चारदीवारी से बाहर
उत्तर दिशा की ओर चला गया। लेकिन जाते हुए वह उस बकरे को भूल
गया जो रेवड़ से अलग शीशम के पेड़ की पत्तियां खा रहा था । उस
बकरे को भी रेवड़ के वहां से जाने का पता नहीं चला। बकरे ने पेट भर
हरी पत्तियां खा कर अपने आगे वाले पैर पेड़ से नीचे उतारे। इसके
बाद वहां देखा जहां उसने रेवड़ और गडरिये को छोड़ा था। रेवड़ और
गडरिये को वहां से गायब पाकर वह घबरा गया।वह चिल्लाता हुआ
चरदीवारी के गेट की तरफ भागा। गेट के पास जाकर उसने
पैरों के निशान देखे, उन्हें सूंघा और मिमियाता हुआ उत्तर दिशा की तरफ
दौड़ गया। तब वहां मौज़ूद लोग उस जीव की अपने परिवार और कुटुम्ब
के प्रति आसक्ति और लगाव को देख कर दंग रह गए। सब के लिए
यह एक अद्भुत नज़ारा था।
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