गुरुवार, 16 जून 2011

इलाज़ (लघुकथा)



हक़ीम शाह इब्राहिम ने अपनी आंखों पर चश्मा चढा कर बाहर की तरफ झांका। किसी का जनाज़ा उनकी चौखट के आगे से ग़ुजर रहा था। वे दरवाजे तक चल कर आए और जनाज़े में शामिल एक सज्जन से पूछा-" यह कौन फौत हो गया है भई।"
" हकीम साहब यह फातिमा है! मोहम्मद शकूर की बीवी! आज सुबह दिल का दौरा पड़ने से इसका इंतकाल हो गया।"
"रोको इस जनाज़े को !" हकीम साहब की कर्कश आवाज जनाज़ा उठाए लोगों तक पहुंची। सभी सकते में आ गये। सभी गांव वाले जानते थे कि हकीम साहब जिस पर गुस्सा हो जाते थे वह मरीज बिल्कुल ठीक हो जाता था। लेकिन फातिमा की तो मौत हो चुकी है। उसके जनाज़े को हकीम साहब ने गुस्से में आकर क्यों रूकवाया। सभी की नज़रे हकीम साहब के दवाखाने की तरफ हैरानगी से देख रही थीं। जनाज़ा रुक गया। 
" जनाज़े को नीचे उतारो ! कोई अन्दर से मेरी बंदूक लाओ!" हकीम साहब का गुस्सा और बढ गया। जनाज़े में शामिल लोग भौंचक्के रह गये। भीतर से बन्दूक लाई गयी। हकीम सहाब ने फातिमा के जनाज़े के पास बन्दूक रख कर आसमान की तरफ हवाई फायर किया। उसी समय फातिमा के बदन में हरकत हुई और कुछ ही पल बाद फातिमा जनाज़े से उठ कर बैठ गई। सभी यह दृश्य देख कर दंग रह गये। किवदन्ति है कि फातिमा गर्भवती थी। उसके दिल की धड़कन गर्भ में पल रहे शिशु के हिलने डुलने से रुक गई थी। लेकिन बन्दूक के धमाके की आवाज से यह शिशु फिर हिला तो फातिमा की धड़कन फिर से चलने लग गयी।
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