धनकु ने बीसियों गालियां दीं, एक झापड़ भी रसीद कर दिया। गोरली सब सहन कर गई। उसने धनकु ने बीसियों गालियां दीं, एक झापड़ भी रसीद कर दिया। गोरली सब सहन कर गई। उसने केवल हल्का सा विरोध किया। धनकु का सुबह सुबह शराब पीना, गोरली को बर्दाश्त नहीं होता और धनकु को उसके शराब पीने के बारे में कुछ कहना सहन नहीं होता। तभी यह बावेला खड़ा हो गया, सरे बाजार, सुबह सवेरे।
गोरली ने सड़क के किनारे फ़टी हुई टाट बिछाई। पेटी, पालिश, ब्रश और रंग बिरंगी शीशियां सजा कर बैठ गई, मर्दों के जूते गांठने, पलिश करने को। उसके नथुने अभी भी फूले हुए हैं। माथे की त्यौरियां चढी हुई हैं, लेकिन वह चुप-चाप बैठी है, मन के गुबार को भीतर ही दबाए।
अचानक उसकी नज़र, रेलवे बाऊन्डरी में जमा भीड़ की तरफ चली गई। वहां अन्नपूर्णा सेवा समिति द्वारा सक्रान्ति के अवसर पर गरीबों को सूजी का हलवा बान्टा जा रहा था। गोरली भी पंक्ति में जा कर बैठ गई। जितना हलवा मिला उसे पत्तल में समेट कर वह वापस लौट आई। टाट पर रख वह एक निवाला मुंह की तरफ ले गई,,,, लेकिन खाने का मन नहीं हुआ। हलवे वाला पत्तल समेट कर, पेटी में रख दिया और वह बैंक के पिछवाड़े धनकु को बुलाने चली गई। धनकु लड़खड़ाता हुआ, गोरली का सहरा लिए टाट पर आ कर बैठ गया। गोरली ने पेटी से हलवा निकाल कर धनकु के आगे रख दिया। धनकु ने आंखें मिचमिचा कर गोरली की तरफ देखा। गले को खरखरा कर साफ किया। फिर धपाधप हलवा खाकर उठा और लड़खड़ाता हुआ बैंक के पिछवाड़े वापस चला गया। जब धनकु आंखों से ओझल हो गया तो गोरली ने पत्तल में पड़ा, एक ग्रास हलवे का लौंदा उठा कर मुंह में डाल लिया। हलवे का वह बचा हुआ ग्रास निगलते हुए उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुरहट फैल गयी। उसे लगा जैसे भीतर का गुबार आत्मसन्तुष्टि के शीतल जल में घुल गया हो।
************************************************केवल हल्का सा विरोध किया। धनकु का सुबह सुबह शराब की तरफ ले गई,,,, लेकिन खाने का मन नहीं हुआ। हलवे वाला पत्तल समे
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