
मैं क्लिनिक के भीतर पहुंचा। मरीज़ों की काफी भीड़ जमा थी। कन्धे से बैग उतार कर नीचे रखते हुए मैंने कम्पाउंडर से पूछा-"क्या डाक्टर समीर हैं ?"
कम्पाउंडर ने केबिन की तरफ इशारा करते हुए कहा-"भीतर हैं ।"
मैंने लपकते हुए केबिन का दरवाजा ठेल दिया। भीतर झांका। एक पके हुए बालों वाले सज्जन किसी मरीज़ का परीक्षण कर रहे थे। सोचा शायद वे भी कोई डाक्टर हैं। मैंने ठिठकते हुए पूछा-" नमस्कार ! मुझे डाक्टर समीर से मिलना है !"
उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।सिर्फ नज़र उठा कर देखा और फिर कागज़ के टुकड़े पर सामने बैठे मरीज़ को दवा लिखने लगे। वह मरीज़ बाहर चला गया। उन्होंने उठ कर मेरे कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा-" आओ मैं तुम्हें डाक्टर समीर से मिलाता हूं ! " मैं निःशब्द उनके साथ हो लिया। क्लिनिक के पिछवाड़े बने मकान में पहुंच कर उसने अपने बालों को सहलाया।मूंछे और सिर से विग उतार कर उसने तिपाई पर रख दी। मैं भौंचक्का आंखें फाड़े उसकी तरफ देखता रह गया। वह डाक्टर समीर ही था।
" समीर ! ये क्या ?"
" मेरी सफलता का राज़!"
"सफेद बालों की विग और मूंछों में भला सफलता का कैसा राज़ ?" मैने कौतूहल वश पूछा।
" राजेश भाई ! मैने एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद जिस कस्बे में अपना क्लिनिक खोला वहां मैं पूर्णतया विफल रहा। यह भेष धारण करने के बाद इस कस्बे में क्लिनिक खोला और आज मैं कामयाब हूं।"
"लेकिन इससे क्या फर्क पड़ा ?" मैं और उलझ्न महसूस करने लगा।
इस पर डाक्टर समीर ने उत्तर दिया-"पहले मेरा लड़कपन,युवा होना मेरी कामयाबी के आड़े आ गया। किसी मरीज़ को डाक्टर के उपचार से तब ही सन्तुष्टि प्राप्त होती है, जब उसे डाक्टर के चेहरे पर अनुभव की झुर्रियां दिखाई दें। यह लोगों की मानसिकता है। मैने सफेद बालों की विग लगा कर अपने आप को मरीज़ों की मानसिकता के अनुरूप ढाला।"
समीर का उत्तर सुन मैं कर आश्चर्य से तिपाई पर रखी सफलता की विग को देख रहा था।
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